जिज्ञासाओं की पूर्ति करने की चेष्टा करने वाला इंसान ये अक्सर भ्रम में रहता है की इन चेष्टा से उसे उसका लक्ष्य हासिल होगा। वह इन कर्मो को करने में अपने आपको असमर्थ पाता है तो कभी गलत रह पकड़ लेता है तो कभी चेष्टा को इतना प्रबल कर लेता है कि उसे सत्य का बोध ही होना बंद हो जाता है।
यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि अच्छे परिणाम पाने के लिए सर्व प्रथम आवश्यक है अपने गुणों की साधना। वोह गुण जिनसे ये शरीर स्वस्थ रहता है और जीवन सुखमय ।
गुण जब सधने लगता है तो बुद्धि और विवेक स्वयं ही सही समाधान खोजने लगते हैं। इसे ऐसे समझिए की आप को ऑटोमैटिक कार चलानी है। उस चालू व स्वचालित करने हेतु इग्निशन ऑन करना है परन्तु आप चाबी ले कर ढूंढने में लगे हैं चाबी कहां लगेगी जबकि वह बटन वाली कर है। चाबी आपकी जेब में ही रहेगी।
इसमें गुण आपका ज्ञान है गाड़ी के बारे में और कर्म सय्यम और निष्ठा से इस ज्ञान को साधना। धर्म बनता है कि गाड़ी को सही प्रकार से आप रखते है।प्रेम से वह धर्म का निर्वाह होता है तो स्वातः सब ठीक प्रकार से परिपूर्ण होता है।
नारायण दृष्टि