संदेह में रहने वाला स्वयं ये नहीं जानता को वोह उस संदेह का जन्म दाता है। उसे सदेव यहीं ज्ञात होता है कि वोह किसी और की करनी का शिकार हो कर दुख भोग रहा है।
संदेह, असमंजस, क्रोध, और भय, इत्यादि ऐसे विकार हैं जिन्हें इंसान स्वयं जन्म देता है। और ये विकार उसके सदभाव को दुर्भाव में बदल देते हैं। भावों के बदलने का सीधा संबंध इंसान की चेष्टा और बुद्धि पर असर करता है। जिसके कारण मनुष्य अपने कर्म गलत भाव से करता है जो कि अधर्म का रूप लेकर पाप का भागी बनता है।
एक भाव को साधे रखने से आप इस पूरे चक्र को भेद कर, किसी भी परिस्थिति से बाहर निकाल कर उसे, अपने सद्गुणों से सही दिशा दे सकते हैं।
इससे यही ज्ञात होता है कि आपके भाव प्राथमिकता रखते हैं आपके जीवन में। अगर भाव सुविचार, प्रभु में आस्था और विश्वास के साथ जागृत रहते हैं तो विकार कमजोर पड़ने लगते हैं और समय की के साथ आप के रुके हुए कार्य सुचारू रूप से पूर्ण होने लगते हैं।
विकारों के कमजोर पड़ने से आप के सद्गुण स्वयं ही आपको परिसुध प्रेम से भर कर आपको विनम्र और जीवन सुखमय बना देते हैं।
नारायण दृष्टि