बहुत से इंसान अपने निजी संबंधों में देखे जो बहुत लग्न पूर्वक पूजा पाठ सभी नियमो के अनुसार करते हैं परन्तु उनको अपने दुखों का अंत होता नहीं दिखता।
वोह सालों तक पूजा पाठ करते रहते हैं प्रभु में पूर्ण श्रद्धा और भक्ति रख कर परन्तु अकस्मात विपत्ति उनके ऊपर भी टूट ही पड़ती है।
ऐसा क्यों ?
अब वापस दृष्टि अपने पूर्व पाठ में व्याख्या किए गए गुणों पर डालते हैं।
निरंतर पूजा पाठी इंसान अपने कर्म सहेज कर धर्म का पालन भी करते हैं। फिर भी दुख कम नहीं होते।
हर इंसान को सभी गुणों को सहजता से अपने भावों को साधना चाहिए।
अगर कोई इंसान कर्म और धर्म का पालन करता है परन्तु धैर्य नहीं रखता और परेशानी में क्रोध इत्यादि प्रकट करता है वह कभी अपने भावों पर नियंत्रण नहीं रख पाता।
ऐसे ही व्यक्ति अपने संबंधियों, मित्रों इत्यादि के प्रति अगर अपनी निष्ठा खो देता है तो उसके भाव सवतः ही दुष्प्रभाव डाल कर उसके काम बिगड़ देते हैं।
इन सभी चीज़ों से इंसान अपने कर्म को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पाते और भटकते रहते हैं।
प्रभु और देवताओं की पूजा का फल तभी मिलता है जब हम अपने भाव को साध कर इन गुणों को सही मापदंड पर रखते हैं। क्योंकि ये भाव और गुण देवताओं के आशीर्वाद और हमारे सांसारिक सुखों और दुखों के बीच कड़ी होते हैं। ये गुण जब सही मात्रा में हमारे अंदर ना होने से हमारी पूजा भी सफल नहीं होती।
यूं समझिए कि आप पूजा घर में बैठ कर दिया भले ही ना जलाएं परन्तु इन गुणों को अपने बस में रखने हेतु मानसिक जाप करते रहे तो वह ज्यादा लाभकारी होता है।
नारायण दृष्टि