भाव जब सधने लगते हैं तो कोई साथ नहीं होता।
सिर्फ शून्य होता है।
ध्यान धरते ही सब गायब और ब्रह्माण्ड अपने अंदर ही दिखता है।
शरीर की आसक्ति भी खत्म हो जाती है और फिर प्राण आत्मा से मिल कर कर उड़ने को तैयार रहते हैं।
हर वक़्त हल्का पन, आनंद मय होता है।
परमात्मा के नाम में भेद नहीं होता। चाहे कोई भी नाम भज लो और कोई भी मंत्र जाप करो।
मै मै हो जाता है, नाड़ियां अपने आप ठीक प्रकार से शरीर को ध्याने लगती हैं।
चक्र जाग्रत अवस्था में रहते हैं और भाव नियंत्रण में रहते।
मै मै नहीं, पर सब कुछ मै ही हूं। ऐसी अभिव्यक्ति उभरती है।
और प्रगाढ़ प्रेम , चर अचर जीवों के लिए व्याप्त रहता है। ऐसा प्रतीत होता है की जो दिख रहा है उसे आलिंगन कर, प्रेम भरे संवाद के साथ धन्यवाद किया जाय कि को साथ में है।
सर्व व्यापी के होने का आभास होता है और परलोक में विचरण करती हुई आत्माओं का व्यक्तित्व उभर कर सामने आता है।
इस अवस्था में हर समय विचरण करते हुए, ना नियम ना नाम ही ध्यान रहता है। ना अतीत ना आगे की चिंता और ना ही तुम वर्तमान है में शेष रह जाते हो।
सिर्फ होते हो, काल से परे सिर्फ महाकाल के सानिध्य में और महाकाली की गोद में।
ना इंतजार ही शेष रह जाता है किसी चीज का।
शरीर हो या ना हो, मै होता हूं। आंख खोल इस भौतिक संसार को देखता हुआ। खाता पीता हंसता रोता क्रोध कभी और कभी भाव विभोर सा।